पाकिस्तान ही क्या, यह उपमहाद्वीप की ही समस्या थी कि विकेट गिरने शुरु होए तो फिर ताश के पत्तों की तरह गिर गए। कुछ मौके आते कि पाँच विकेट गिरने पर कपिल देव ने अकेले धुआँधार खेल मैच जिता दिया, या जावेद मियाँदाद जम गए और आखिरी गेंद में छक्का मार ही जीता। लेकिन यह बस कुछ यादगार पारीयों तक ही सिमटा था। श्रीलंका में भी राणातुंगा-डीसिल्वा ने ‘96 के आस-पास ही मिडल-ऑर्डर को मजबूती दी, लेकिन तब तक वे बूढ़े हो चुके थे।
लेकिन, बूढ़े खिलाड़ियों में एक नाम उस वक्त जरूर याद आता है जब भारत-पाकिस्तान का खेल आता है। जिस उम्र में खिलाड़ी रिटायर होने लगते हैं, उस वक्त यह खिलाड़ी टी-20 टीम में चुना जाता है। छठे स्थान पर उतर कर पाकिस्तान को कई खेलों में विजय दिलाता है, जोगिंदर शर्मा के आखिरी ओवर में भी छक्का लगा कर भारतीयों को मियाँदाद की याद दिलाता है। और फिर भारत से हार कर पाकिस्तान की जनता के लिए मरदूद बनता है।
पाकिस्तान में चुटकुले चलते, उलाहना दिए जाते कि मिस्बा-उल-हक कि तरह टुक-टुक मत कर यार! लेकिन इस खिलाड़ी में टुकटुकाने की भी क्षमता थी, और लंबे छक्के लगाने की भी। यह पाकिस्तान का सबसे सफल टेस्ट कप्तान भी बना। लेकिन मिस्बा-उल-हक पाकिस्तान में मोहाली की उस हार के लिए ही याद किया जाता रहेगा, जब वह अंत तक अकेले लड़ता तो रहा लेकिन यह बूढ़ा आखिर गिर गया।
भारत को भी यह फिनिशर जरूर याद रहेगा, जो फिनिश न कर सका।
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