यह प्रश्न कई लोगों ने पूछा है, और मैंने भी पुस्तकालय में मिले लोगों से पूछा कि आप भला यहाँ क्यों खड़े हैं? एक ने कहा कि उनके घर का एक पौधा बारम्बार सूख रहा है, और उस पर एक किताब यहाँ थी जो गुम हो गयी। गूगल पर जितने टोटके थे, सब आजमा लिए। उन्हें दूसरे शहर के पुस्तकालय से किताब मंगा दी गयी। दरअसल ऐसी किताबें बाजार में नहीं मिलती कि इनकी बिक्री कम है (और इसलिए मँहगी है)। वहाँ थ्रिलर और रोमांस अधिक बिकते हैं। ग्रंथालय में ऐसी कई किताबें सहजता से मिल जाती है, जो ‘आउट ऑफ़ प्रिंट’ हो गयी।
अमरीका और यूरोप में हर व्यक्ति (बच्चे भी) के पास एक पुस्तकालय कार्ड होता ही है। भारत में भी सभी मुख्य शहरों में यह मुफ्त या नाम-मात्र फ़ीस पर उपलब्ध है। अमरीका के एक सर्वे में लगभग आधी जनसंख्या पुस्तकालय का इस्तेमाल करती है। यूरोप में भी पुस्तकालय अक्सर सिनेमा हॉल के साथ ही बनने लगे हैं, तो लोग आते-जाते रहते हैं। मुफ्त में दो किताब उठा ली। वह रखने गए तो दो और उठा ली। यह चक्र चलता रहता है।
आज के डिज़िटल युग में यह और सुलभ हो गया है। किताबें घर बैठे बुक हो जाती है। हाँ! यह जरूर है कि भारत जैसे देश में इसकी आदत घट गयी है। समय नहीं मिलता। हर दसवाँ आदमी एक ही किताब पढ़ रहा होता है, जो ट्रेंड में हो। ऐसे में पूछ उसी की होती है, जो ऐसी चीज जानता हो, जो ट्रेंड में नहीं हो। और उसका एकमात्र आसान स्रोत पुस्तकालय है।
अब पौधे सूख रहे हों, तो समस्या पौधे की तो नहीं ही है। हमें बस यह अपने आप से पूछना है कि पुस्तकालय कार्ड कहाँ बनेगा?