पटना के पास एक जगह है मनेर। वहाँ एक दरग़ाह है मनेर शरीफ़ और मनेर के लड्डू भी मशहूर हैं। वहीं से एक महिला अपने बच्चे के साथ भाग कर कलकत्ता के रास्ते जहाज पर सूरीनाम पहुँच गयी। यह बात 1880 ई. की है। उस वक्त भारत में एक मुस्लिम महिला की स्थिति जैसी भी हो, पर अपने बच्चे को लेकर परिवार छोड़ कर सात समंदर पार भाग जाना हिम्मत का काम है।
कहते हैं, “पलायन नारी मुक्ति का द्वार है”। भागी हुई लड़कियाँ मुक्त हो जाती है।
वह महिला जानी तेतरी भी मुक्त हो गयी। उसने गन्ना खेतों में खूब मजदूरी की, अपना बच्चा भी पाला और एक हिंदू बच्चा भी गोद लिया। कुछ ही वर्षों में जानी उन मजदूरों की सरदारनी बन गयी, और लोग उससे सुझाव वगैरा लेने जाते। इतना ही नहीं, जानी मजदूरों के हक की लीडर भी बनी।
तेतरी के साथ लगभग चार सौ मजदूर एक स्कॉटिश बागान में काम करते, जहाँ के हालात बुरे थे। उन्हें कोल्हू के बैल की तरह काम कराया जाता, और खूब ज्यादतियाँ होती। एक दिन सब्र का बाँध टूट गया, और तेतरी-रामजनी ने मिल कर सत्याग्रह छेड़ दिया। फिरंगियों की फौज ने जब घेरा तो मजदूरों ने भी ढेले-बोतल उठा लिया और तेतरी ने समूह को लीड करते चिल्लाया, “आवा! हिम्मत है तो आवा।”
मजदूरों को घेर कर फायरिंग हुई, और एक गोली तेतरी की पीठ पर लगी। रामजनी नदी में कूद गए। तेतरी के साथ छह हिंदुस्तानी शहीद हुए।
वर्षों बाद जब मैं तेतरी की खोज में निकला, तो मालूम पड़ा कि वह भुला दी गयी थी। फिर एक हिंदुस्तानी ने तेतरी की लड़ाई वापस शुरु की। उनसे मैं मिला भी। आखिर एक अंग्रेज की मूर्ति को गिरा कर सूरीनाम की राजधानी में जानी तेतरी की मुर्ति स्थापित की गयी। यह बात भी छिड़ी कि इस्लाम में मूर्ति पूजा नहीं होती, उस पर सबने कहा, “ओ न हिन्दू हइ, न मुसलमान, ओ हमार हिंदुस्तानी माई हइ।”
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