जड़ें ढूँढना कठिन तो है ही। भारत में जड़ें ढूँढना और भी कठिन है, क्योंकि पुराने रिकॉर्ड डिजिटल नहीं हैं। ट्रिनिडाड के भारतीय (बिहार) मूल के शमसुद्दीन अब अस्सी वर्ष से ऊपर हैं। उन्होंने अपने जीवन-काल में तीन सौ बिछड़े परिवारों को मिलाया। उनके पास मात्र एक जहाजी काग़ज होता, जिससे उनके गाँव को ढूँढ कर यह मिलान करना होता कि वह कहाँ से आए? गाँव का भूगोल बदल चुका होता, पीढ़ीयाँ बदल चुकी होती, यहाँ तक कि धर्म भी कई परिवारों के बदल चुके होते। शमसुद्दीन ट्रिनिडाड से भारत आकर गाँव-गाँव घूमते, लोगों को तस्वीरें दिखाते, पूछते कि जहाज पर कोई गया था?
उन्होंने ही अपनी पुस्तक में ‘दुल्हन थ्योरी’ बनायी, जिसके अनुसार गाँव की दुल्हिनों के पास सबसे अधिक जानकारी होती है। पुरुष रिश्ते भूल जाते हैं, लेकिन दुल्हिन दोनों घरों का रिश्ता संभाल कर रखती है।
शमसुद्दीन जी की अब उम्र हुई, लेकिन यह डायस्पोरा के परिवारों का जुड़ना चलता रहे। ‘कुली लाइन्स’ में शमशुद्दीन जी के चिट्ठियों का संदर्भ तो है ही, अगर कोई सूत्र आपके पास हो तो अवश्य शेयर करें। कई लोग अब भी परिवार ढूँढ रहे हैं, और विदेश मंत्रालय की ‘ट्रेसिंग द रूट्स’ योजना ख़ास सफल नहीं।
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