पंडित भीमसेन जोशी किराना घराना से थे। किराना कहिये या कैराना। वही कैराना जो समाचारों में हाल में बदनाम रहा, कभी संगीत का गढ़ था।
एक कहानी कल ही पढ़ी। गायकवाड़ महाराज के पास नामी अालिया बख्श और फतेह अली (आलिया-फत्तू) की जोड़ी थी। वो गाते तो उनके बाद किसी के गाने की हिम्मत नहीं होती। यह तौहीन कैराना के अब्दुल करीम खान साहब ने की बीस बरख में। वो गाया कि हिंदुस्तान हिल गया। और तो और, गायकवाड़ राजकुमारी ताराबाई रातों-रात उनके साथ भाग गई। राजकुमारी तो छोड़िए प्रेम में, पर ११ बरख के पंडित जोशी उन्हें सुनकर घर से भाग गए कि गायक बनना है। यह कहकर कि करीम साहब जैसा गाना है। भला ऐसा क्या गाते होंगें कि सब उनके साथ भाग पड़ते?
कोई कहता है पं. भीमसेन जोशी जैसा मारू बिहाग कोई नहीं गा सकता। हम जैसे अनाड़ी कहते हैं, पंडितजी जैसा ही कोई नहीं गा सकता। और पंडित जी कहते कि करीम साहब जैसा कोई नहीं गा सकता।
ऐसा नहीं है कि करीम साहब पर उँगलियाँ नहीं उठीं। उन्हें पुणे के कट्टर हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रश्न करते। वह रोज गायत्री मंत्र का जाप करते, और उनके अधिकतर शिष्य हिंदू थे। खासकर रामभाऊ कुंडगोलकर जो बाद में ‘सवाई गंधर्व’ नाम से मशहूर हुए। करीम खान साहब ने बाल गंगाधर तिलक के सामने ‘हरि ओम तत्सत्’ भजन सुनाया था, और तिलक मंत्रमुग्ध हो गए थे। गायकी-मौशिकी में यह आम था। अलाउद्दीन खान साहब मैहर देवी की पूजा करते थे। ये कैराना-फैराना तो तब की देन है, जब संगीत उड़ गया और गर्द रह गया। हम रह गए, आप रह गए।
मारू बिहाग पर चर्चा कभी बाद में। फिल्मी तर्ज दे देता हूँ आइडिया लगाने के लिए। “दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए….” मारू बिहाग की छवि है। या लता जी का “तुम तो..प्यार हो…सजना..तुम तो…”
गिरिजा देवी की चर्चा हुई। उन्हें ही सुन रहा था, और करीम खान साहब को पढ़ रहा था।
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