पंडित रविशंकर और विलायत खान में वास्तव में कुछ रंजिश थी या लोगों ने ऐसी रंजिश बना दी? कई कहानियाँ हैं, और कई गढ़ी भी गई।
१९५० में लाल किले में दोनों साथ बजाने बैठे। विलायत खान साब घराने से भी सीनीयर थे और तालीम से भी। पर पंडित रविशंकर अलाउद्दीन खान साहब के चेले थे और नेहरू जी का भी खास लगाव था। ज्यादा पॉपुलर थे, और सुभाषी भी। बजाने आते तो लोग अगुवाई करते। विलायत खान साहब के साथ क्या ऊँच-नीच हुई पता नहीं, पर उन्होनें कुछ चाल चली। उन्होनें वो झाला बजाया जो उनके घराने की खासियत थी। पं रविशंकर पीछे रह गए, और पब्लिक ने विलायत खान को बेहतर घोषित कर दिया, अखबारों ने भी। हालात यहाँ तक पहुँचे कि रविशंकर ने उन्हे ‘rematch’ का चैलेंज दे दिया, जो कभी शायद हुआ नहीं।
बाकी कोई कहता है कि विलायत खान ने एक रूपया ज्यादा फीस माँगी क्यूँकि वो सीनीयर थे। रविशंकर ने चाल खेली, और पैसे लेने से मना कर दिया। शर्त के अनुसार विलायत खान को बस एक रूपया पारितोषिक मिला।
रविशंकर आगे बढ़ते गए, विश्व में भारत का नाम किया। विलायत खान साहब अपने शर्तों पर जीते रहे। उनकी फीस इतनी ज्यादा थी, कि ऑल इंडिया रेडियो उनको afford नहीं कर पाती। फीस तो रविशंकर की भी ज्यादा थी, पर रविशंकर आखिर रविशंकर थे। लोग दिल खोलकर पैसे देते थे। रविशंकर को भारत रत्न भी मिला, और विलायत खान साहब ने पद्म-विभूषण लेने से गुस्से में मना कर दिया। किसी ने आग लगाई ब्राह्मण को प्राथमिकता मिली, मुस्लिम को नहीं। किसी ने कहा, रविशंकर अच्छी बंगाली बोलते हैं, और विलायत खान कलकत्ता में रहकर भी ठीक से नहीं बोल पाते।
मुझे दोनों पसंद हैं, मुझे कुछ खास संगीत का ज्ञान भी नहीं। रविशंकर के चेले सितार में नहीं, अनुष्का शंकर रीमिक्स वर्सन हैं वैसे। वहीं विलायत खान से कुछ कम शुजात खान नहीं बजा रहे? वो अपनी विरासत देकर गए। संगीत में विरासत छोड़ना, शिष्य को शिक्षा देना मायने रखता है। तो विलायत एक रूपया ज्यादा के हकदार जरूर हैं।
जब वो मरे, तो देश उन्हें भूल चुका था। सिवाय वाजपेयी जी के जो उनके फैन थे और प्रधानमंत्री भी। वो लूज़र कहीं से नहीं, कुछ लोग बस अपनी शर्तों पर जीना पसंद करते हैं।