जो लोग मैथमेटिक्स (गणित) पढ़ते हैं, वो अपनी नोटबुक को अक्सर लाल-हरी धारियों से सजाते नहीं। सवाल पढ़ते हैं, और कीड़े-मकोड़े जैसे गुणा-भाग-सिम्बॉल बनाकर पता नहीं क्या-क्या लिख डालते हैं! मैंनें एक प्रयोग किया था सालों पहले। मैट्रिकुलेशन में गणित के हर सवाल का सजा-धजाकर उत्तर दिया। अल्जेब्रा के डिजाइनदार ब्रेकेट के बीच मुस्कुराते a, b, और c और ब्रैकेट के ठीक बाहर पहरा देते 2, 3। घुमावदार इंटिग्रल। अजी वाह! गणित में १०० में १०० आये थे, पर उस दिन के बात गणित नहीं पढ़ा। कभी नहीं। असल बात थी कि गणित सजने-धजने लिपस्टिक लगाने वाली सुंदरी नहीं, बल्कि वो अजीब सी सवालिया आँखों से घूरती बॉय-कट बालों वाली युवती है जो हाथ घुमा कर पटक देगी। मैं कट लिया।
मुझे लगा मैं संवेदनशील व्यक्ति हूँ, चिकित्सक ही बनूँ तो बेहतर। मुझे क्या पता था यहाँ संवेदना का चीरहरण हो जाएगा। मरीज कराहेगा, तो आप निश्चिंत केस हिस्टरी लंबी करते पूछेंगें, “आप सिगरेट या शराब तो नहीं पीते?” वो हाँ या ना जो भी कहेगा, दर्ज कर लेंगें और आगे सवाल पूछना जारी रखेंगें। महिलाओं को उनके मासिक और यौन संबंध के बारे में कैजुएली पूछेंगें आँखों से आँखों मिला कर। वो शरमाए तो दुबारा पूछेंगें। खैर, सफल रहा। स्पेशलिस्ट भी बना, और कभी मरीज या परिजनों से पिटा भी नहीं।
लिखना शुरू कब किया ये मैटर नहीं करता। नानी को चिट्ठी लिखा या प्रेमिका को प्रेमपत्र, लिखता वैसे ही सजा-धजा कर। नानी के आँखों में आंसू कभी नहीं आए, बड़ी कड़क थी। पर मुस्कियाती जरूर। प्रेमिका ने पहले दो महिने पढ़े, फिर कहा तुम प्रेम करने आए हो या साहित्य झाड़ने? मैनें भी लिखना बंद कर दिया।
ब्लॉगर तो तब बना जब पता लगा ब्लॉग चीज क्या है? यहाँ हर कोई लेखक बना है। मैं भी बन गया। कोई पढ़े न पढ़े, खुद अपना ही ब्लॉग चार बार पढ़कर मुस्कियाता। लगता, वाह क्या लिखा है!
असल परिक्षण पर अब उतरा हूँ, जब हिंदी किताब मार्केट में आयी। दोस्तों पर पुराने संबंध का बोझ था। सबको पढ़नी ही पड़ी ‘चमनलाल की डायरी’। दोस्त हैं भी सैकड़ों, जिनके कई रहस्य छुपाए बैठा हूँ। किताब खरीद लो, नहीं तो सारे चिट्ठे खोल दूँगा। कुछ ढीठ को छोड़कर सबने जेब ढीली की।
बाकी बचे साहित्य-प्रेमी। अंग्रेजों के जमाने के जेलर। आधे अंग्रेजी की तरफ मुड़े, आधे सोशल मीडिया पर टिपटिपा रहे हैं। कोई प्रेमी बचा कहाँ हिंदी साहित्य का!
मेरे एक मित्र अक्सर कहते, “भाड़ में जाए दुनिया। हम बजाए हारमोनिया”. चलिए। फिर बजाया जाए।
बेहतरीन है, हमेशा की तरह। लगे रहिए।
All the best for your first book!
बेशक़! बाजे सो पैजनिया, न थमे सो हरमुनिया! आज ही ‘श्री गणेश’ करिये और फिर से घिसना आरम्भ कीजिये। चमनलाल जी ने तो वाकई ‘धूम’ मचा दी है, भाग २ का इंतज़ार रहेगा।
Congratulations:-)