शोभा डे जी का मैं पुराना कायल हूँ. विलियम डैलरिम्पले ने लिखा था ने उनके घर के कंकड़ भी रोज़ चुन-चुन के शैम्पू किये जाते हैं. जब थोड़ा पढ़-लिख लिया, दो-चार-दस पैसे कमाने लगा, सोचा अब वक्त आ गया है हाई-क्लास बनने का. कब तक मिडिल क्लास में सड़ते रहेंगे?
लेकिन ये धर्मपरिवर्तन हो कैसे? किसी ने कहा कुत्ता पाल लो. बड़े जुगत का शौक था मेरे लिये. कई गुणों के साथ दो दोष भी पिता से विरासत में मिली- एक हाथों की थरथराहट, दूजा कुत्तों से डर. दुकान तक जाने की हिम्मत न पड़ी. ऑनलाइन देखता, तो भी स्क्रीन से दूर ही रहता. काट न ले. मन ने समझाया, अजी ये गाँव के कुत्ते नहीं जो झुंड बनाके भौंकते रहते हैं, एलीट क्लास वाले हैं, भौंकते भी हैं तो तमीज से. मन बना ही रहा था कि एक ताजा-ताजा हाई-क्लास बने सर्जन मित्र के घर उस रात कुत्ते ने यूँ खदेड़ा, तौबा कर ली. मतलब हाई-क्लास बनने का श्री गणेश ही गलत.
खैर, ऐसे ही मायूस चहलकदमी कर रहा था, एक क्लब पे नज़र पड़ी. सोचा ये है हाई-क्लास वालों का अड्डा. खूब ताश खेलेंगे, विदेशी शराब पीयेंगें. अगले दिन गाड़ी से गया, संतरी ने बाहर ही रोक दिया. मैंनें शान से डॉक्टर वाला ‘+’ का चिन्ह दिखाया, उसने सर हिला के ‘-‘ कर दिया. दस साल की पढ़ाई एक संतरी ने हवा कर दी. अरे भाड़ में गये ऐसे क्लब! गाड़ी साइड में लगाई, आँखों में आँसू आ गये. अजी गम में नहीं, क्लब के बाहर लगे ठेले पे गोलगप्पे खा के.
ये सिलसिला चलता रहा. कभी स्विमिंग करने की कवायद, कभी घुड़सवारी की, कभी गोल्फ खेलने की. हाई-क्लास एक मृग-मरीचिका बन गयी, और मैं हताश दौड़ता रहा.
फिर लगा काहे की शिरकत? एक बारी हाई-क्लास बन गया, तो प्यास बुझाने को भी मिनरल वाटर ढूँढो. प्यास तो छोड़ो, शौच पे भी आफत. भला शोभा डे भी क्या पब्लिक टॉयलेट जाती होगी? ये लोग घंटों रोक लेते हैं, अपनी संवेदनाओं को, हमसे न होगा. और रोड-साईड के मोमो-गोलगप्पे? वो खा लें तो सीधा परलोक सिधार जायें. हमने तो पेट पे एक रोली मारी, सब सेट. न पीले-नीले चश्में पहन गिरने का डर, न दोस्तों से बेहतर दिखने का जूनून. उन्हें वार्ड-रोब मालफंक्शन का भय हो, हम तो खुली पैंट की चेन भी बेशर्मी से मुस्कुरा के बंद करते.
मतलब जी, जब बात नहीं बनी, जिंदगी को हमीद का चिमटा बना लिया. मुश्किल से मुश्किल हाई-क्लास इंट्रेंस टेस्ट रख लेते, बन गया होता अब तक. हमारी भी जिंदगी पीटर मुखर्जी सरीखों से कम न होती. बिगबॉस में होता, और कम से कम ये ब्लॉग तो न ही लिख रहा होता. पिंक फ्लॉयड के गाने सुनता हूँ, यूरोपियन चाव से खाता हूँ, फिर भी लगता है, त्रिशंकु अपर क्लास हूँ. उल्टा लटका हुआ. ऊर्ध्वमूल.
डी.जे. वाला बाबू! हद है! मैं नहीं बजाता गाना-शाना.
😀 lol , always refreshing to read your posts 🙂
आज सही में हामिद का चिमटा याद आ गया | फैशन और हाई क्लास का तो मैं इतना जानकर नहीं हूँ, पर एक बात तो तय है आप बहुत ही सहज प्रवृति के इंसान हैं. व्यंग के सहारे सीधे ह्रदय में समां जाते हैं. आपके त्रिशंकु की व्यथा सुनकर आनंद आया.
वास्तव में एक अजीब सी उत्सुकता का अनुभव होता है आपके पोस्ट में और साथ में ये मनोरंजन और यूनिक लेखन स्टाइल एक उत्कृष्ट उदहारण हैं.
बहुत खूब. Well Done Doctor Saab.
very entertaining
Dr Sahab aap ne toh high class ki aisi ki taisi kar di. Par karenge bhi kya. Aakhir golgappe se behtar kaise koi club ho sakta hai? Aur kutton ka toh kahiye hi nahi. Mere dost Amreeka waale ne ek baar phone pe bataaya ki yaar yahan ke kutton ki toh living expenses mujhse zyada hai. Aur main yahan gali ke kutte ko laathi leke bhagaa raha tha kyunki usne do Marie biscuit khaa liye jo galti se maine varande pe chhode the.
Khair, bahut khoob likha hai aapne hamesha ki tarah.
Bahut badhiya! “Hamid ka chimta” bahut hi badhiya muhavra banaya!
बहुत बढ़िया.
Arey high class ka tho pata nahin par pls kutton se mat bhagna…they are such good company to have…
And they are really not expensive…I don’t know about high class upbringing but my vet says pls give him food other than pedigree as well…and you know I am sure nobody on this earth can greet you the way dogs do when you get back home. So doctor saab get a dog ASAP not cos to get some class but some happy moments at home
Sure I will try. Any suggestions on some not-so-licky-bity-barky variant?
http://tanushi.blog.com/2015/11/07/miracle-with-paws/
kya khub vyang kiya hai..maza aa gaya:)