मेरे जैसे अपने को बुद्धिजीवी कहने वाले अक्सर राजनैतिक चुप्पी साध लेते हैं. ये कह कर कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता. लोगों ने देश से भागने के चक्कर में जी जान मेहनत की, जुगाड़ लगाए, और नेताओं नें ये रोड, वो इंडस्ट्री खड़े कर दिये कमीशनखोरी के चक्कर में. मज़ाक मज़ाक में देश टैलेंट की खान बन गया, और विकास के हिलोड़ें लेने लगा. इसी धक्केबाजी में मैं भी बिहार के एक गाँव से उठ कर अमरीका रिटर्न डॉक्टर बन बैठा. पर इसका सारा क्रेडिट महानुभाव लालूजी को. भला मोमबत्ती में पढ़ने में जो शक्ति थी वो ट्यूबलाइट में कहाँ? इधर उधर ध्यान हीं नहीं जाता. कागज पे एक गोल प्रकाशित क्षेत्र दिखता, उसके अतिरिक्त सब अंधेरा. जूही चावला की एक तस्वीर दिवाल पे लगा रखी थी. अंधेरे में बिल्कुल भूतनी नजर आती. ऐसे डरावने माहौल में तो आदमी दो ही चीज़ें पढ़ पाए- एक सामने रखी किताब, या फिर हनुमान चालीसा.
बकवास करने की, जिरह करने की पुरानी आदत थी, और पढ़ने की तो बाय डिफॉल्ट थी ही. नेहरू-गाँधी पे इतने भाषन दिये, और हर गली-नुक्कड़ पे गाँधी परिवार की इतनी मूर्तियाँ देखी, कट्टर काँग्रेसी बन गया. नेहरू की ‘डिस्कवरी अॉफ इंडिया’ लगभग कंठस्थ थी. राजीव गाँधी के स्मार्टनेस का कायल था. सोचता मैं भी गोरी फँसाऊँगा. उस वक्त बी.जे.पी धीरे-धीरे उभर रही थी.
कुछ बच्चे हर क्लास में अपनी उम्र से बड़े दिखते है. आखिरी बेंच पे बैठते, बॉसगिरी, मटरगश्ती करते. मुझे बहला-फुसला दिवाल फाँद सिनेमा दिखाते. सब पक्के देशभक्त लेकिन. वो भगत सिंह स्टाइल जोश वाले. मैंने भी सोचा ये असली वाला मामला है. खाकी शॉर्ट पहन शाखा पे जाने लगा, रोज़ हनुमान मंदिर जाता और पाँचजन्य पढ़ता. साध्वी ऋतांभरा की सी.डी. सुन सीनें में हवा भरता.
उसी वक्त स्कूल के एक बड़े जलसे में लालूजी को सुना. क्या स्कूल का जलसा? हेलीकॉप्टर से वो आये, और सारा गाँव उमड़ पड़ा. स्कूल के बच्चे भीड़ में लुप्त हो गये. वो शाखा वाली अपर क्लास नहाये-सुनाये लोगों की भीड़ नहीं, अर्धनग्न लुंगी-गमछा वाले. साला मेरा परशुराम धोबी सीना तान आगे बैठा? वो दूधवाला भी? अकड़ तो देखो! हमारी ब्राह्मनों की बस्ती में मालिक-मालिक बोल घिघियाता है, और यहाँ? खैर, लालूजी बोले और एक छाप छोड़ गये. छुटपन में ही अहसास हो गया, ये विदूषक और स्टैंड-अप कॉमेडियन बड़ा शातिर है. मैंनें भी अपने अंदर हास्य लाने की वर्जिश शुरू कर दी और शाखा की उत्तेजकता से कन्नी काट ली. दलितों और मुसलमानों की तरफदारी करने लगा. शौकिया समाज़वादी बन गया.
ज़ब आडवाणी जी का रथ मेरे जिले से कुछ दूर रूका, और बाबरी नेस्तनाबूद हुआ, मैनें राष्ट्रिया सहिष्णुता पे स्कूल की असेंबली में भाषण दे डाला, और लालू को बना दिया उसका हीरो. किस्मत से ८० % निचली जाति और ग्रामीनों के लिये आरक्षित स्कूल था. कुछ तालियाँ भी बजी. पर हॉस्टल वापस पहुँचा तो तगड़े घबड़ू जवानों ने पुंगी बजा दी. खैर, दलबदलू प्रवृत्ति थी और वाक्-शक्ति बेहतर थी, बहला फुसला भेज दिया.
मेरा अनुमान ठीक ही निकला. लालूजी शातिर रहे; लोग कहते हैं, बहोत लूट-पाट मचायी. भ्रष्टाचार की रेस में सबसे आगे. समाजवाद से मन टूट गया. मैंने भी राजनैतिक सन्यास ले लिया. वाजपेयीजी के भाषण पे मंत्रमुग्ध होता, लेकिन कोई पार्टीवाद नहीं.
सालों गुज़र गये. डॉक्टर बनते बनते दशक गुजर जाते हैं. देश में भी सन्नाटा था. राव साब, देवगौडा, मनमोहन सिंह सरीखे मूक नेता हों तो बच्चो का मन न भटके. मैं भी अच्छा खासा पढ़ लिख सेटल हो गया.
जब केजरीवाल जी ने मुहिम छेड़ी, तो फिर खुराफाती दिमाग कुलबुलाया. फेसबुक पे लंबे-लंबे पोस्ट लिखने लगा. पर इतिहास लौटा, और वो शाखा वाले घबड़ू जवान भी. पुंगी बजा दी. मेरी भी, केजरीवाल की भी. लेकिन वो तो हार्डकोर देशी जुगाड़ू निकले. लोकपाल तो अब गूगल पे भी न मिले. अब ये वामगाँधी जाए तो जाए कहाँ? पाकिस्तान?
बड़े दल-बदलू और मतलबी होते हैं हम जैसे बिहारी. अब पठाखे यहाँ बजे या पाकिस्तान में, खुराफाती जनता तो खुराफात ही करेगी.
We Indians have short memories and lalu looks like a clean man now. Overindulgence by the PM and outspoken ness of RSS leaders has done the damage It’s right time for Modi to return to his PM mode from party speaker as he has been doing wonderful job as PM.
Reblogged this on Sulphurman and commented:
If you have even a feeble interest in Indian politics, you will die laughing while reading this brilliant piece.
For once I am speechless. Kyunki hansi nahi ruk rahi meri. Reblog bhi kar diya. Ab koi mujhe bhi Pakistan na bhej de.
आज खुश तो बहुत होगे तुम…. कहाँ पढ़ने को मिलते हैं शरद जोशी और के.पी. सक्सेना आजकल!?!? I look around and feel everybody’s putting their frustration on paper. You are extremely talented ‘डाक-शाब’, & your insight is utterly warranted….
क्या बात है, ऐसे लग रहा है जैसे मैंने इस कहानी में पूरा जीवन चरित्र पढ़ लिया, और एक बात जो विडंबना है आपकी, वो ही मेरे ख्याल से सब की है. कोई जाए तो कहाँ जाये भाई, लिमिटेड options जो हैं. बहुत खूब…… Really excellent…..
Ap sach me doctor hi hai na janab…ya koi chupa betha journalist. bahut umda tarike se politics me tadka lagaya apne. Aur kya khub tarike se bataya hai apne chirago se padhne wali baat ko.